20 मार्च सन् 1615 को जन्मे दारा शिकोह शाहजहां व अर्जुमंद बेगम का प्रथम पुत्र था, जो तीन बहनों के बाद उत्पन्न हुआ था. उसके सिर पर बायीं तरफ़ तिल था जो स्वयं उसके अमंगल का सूचक था.
शहजादा दारा शिकोह का बचपन बड़े बड़े सूफी सन्तों व फकीरों के सोहबत में बीता. वह बचपन में ही फ़ारसी, तुर्की व संस्कृत का प्रकांड विद्वान हो गया था.
अपने चौदहवें बच्चे के जन्म के समय दारा शिकोह की माँ अर्जुमन्द बेगम का इंतकाल हो गया. माँ के देहांत के बाद दारा शिकोह के मन में वैराग उत्पन्न हो गया. वो सोचने लगा कि आदमी सत्ता का भूखा क्यों है ? सत्ता के लोभ में आदमी अपने निकटतम सम्बंधियों की भी जान लेने के लिए क्यों उतारू हो जाता है ? जबकि उसको पता है कि एक दिन उसे भी संसार छोड़ना है.
सन् 1633 में शाहजहाँ ने उसे अपना युवराज मनोनीत किया. दारा शिकोह दरबार में बादशाह की दी हुई खितवत पहन के आया और तख्तेताउस से लगे सोने की कुर्सी पर बैठा. बादशाह शाहजहाँ ने फरमाया —मेरे बच्चे, मैंने सोच लिया है कि आज से कोई भी अहम् कार्य या कोई भी अहम् फैसला बिना तुम्हारी सहमति के नहीं करूँगा. अल्लाह का मैं किस तरह शुक्रिया अदा करूँ कि उसने मुझे तुम जैसा होनहार बच्चा दिया.”
दारा शिकोह को युवराज घोषित किया जाना उसके भाई औरंगजेब को जरा भी नहीं भाया. उसने सोचा कि यदि दाराशिकोह भारत का बादशाह बन जाएगा तो भारत दार-उल-इस्लाम नहीं कहा जायेगा. भारत एक धर्म निरपेक्ष राष्ट्र होगा और इस प्रकार उसके पूर्वजों की सारी मेहनत पर पानी फिर जाएगा. औरंगजेब एक बहुत बड़ी सेना लेकर दारा शिकोह से लड़ने के लिये चल पड़ा. आगरा से 10 km दूर समूगढ़ में दारा शिकोह व औरंगजेब की सेना की आमने—सामने की लड़ाई हुई जिसमें दारा शिकोह की हार हुई.
दारा शिकोह शिकस्त खा पीछे हटा. औरंगजेब को बहन जहाँ आरा ने खत लिखकर उसे बहुत फटकारा-“तुम्हारा फौजें लेकर आने का मतलब है कि तुम अपने पिता के ख़िलाफ़ विद्रोह कर रहे हो. यदि ये फौजें तुम दारा के खिलाफ लाए हो तो भी गलत है क्योंकि बड़ा भाई क़ानून व चलन के अनुसार पिता तुल्य होता है.”
औरंगजेब को इन बातों का कुछ असर नहीं हुआ. उसने बहन जहाँ आरा को सन्देश भिजवाया कि दारा इस्लाम का दुश्मन है और उसे मारने वाले को ख़ुदा जन्नत बख्शेगा. औरंगजेब की सेना आगरा शहर में बड़ी शान से दाखिल हुईं.
दारा शिकोह का पीछा औरंगजेब ने पंजाब, राजस्थान, गुजरात तक किया. दारा की किस्मत उसका साथ नहीं दे रही थी. कहते हैं कि इंसान की किस्मत का कम्बल यदि काले रंग के ऊन से बना हो तो जन्नत की नदियों का पानी भी उसे उजला नहीं कर सकती. सेवराई के नजदीक हुई झड़प में दारा शिकोह की फिर हार हुई. अफगानिस्तान जाते हुए उसे रास्ते में उसके बड़े बेटे के साथ कैद कर लिया गया. औरंगजेब ने पिता शाहजहाँ को भी आगरे के किले में कैद कर लिया.
दारा शिकोह ने कैदगाह से अपने भाई औरंगजेब को खत लिखा. “मुझे हिन्दुस्तान का बादशाह बनने का कोई शौक नहीं है मेरे भाई ! मैं तुम्हारी सल्तनत के एक कोने में पड़ा रहूँगा. मात्र मुझे मानवता की सेवा करनी है. उसके लिए तुम्हारी सल्तनत का एक कोना ही मेरे लिए काफ़ी है. मैं तुम्हारा बड़ा भाई हूँ और मेरा कत्ल करना तुम्हारी बादशाहत व बड़पन्न के खिलाफ़ होगा.”
पत्र पढ़कर औरंगजेब कुछ सोच में पड़ गया. उसने सोचा कि आवाम (प्रजा) का दारा के बारे में क्या ख्याल है, जाना जाय. दूसरे दिन दारा को जंजीरों में जकड़ एक बूढी हथिनी के ऊपर बिठा कर पूरे आगरा शहर का चक्कर लगवाया गया. शहर के नर नारी यह दृश्य देखकर रो पड़े. वे साथ चल रहे सिपाहियों पर पत्थर बरसाने लगे. औरंगजेब को आवाम के रुख का पता चल गया. उसने दारा शिकोह को अपने लिए बहुत बड़ा खतरा माना. वो समझ गया कि दारा शिकोह की लोकप्रियता उसे एक दिन सत्ता से बेदखल भी कर सकती है. आखिरकार उसने अपने भाई दारा के मौत के हुक्मनामे पर दस्तखत कर दिए क्योंकि बादशाहत किसी भाई वाई के रिश्ते को नहीँ मानती.
10 सितम्बर सन् 1659 को जब दारा शिकोह को मौत की सजा देने के लिए गिरफ्तार किया गया, उस समय वह अपने साथ रह रहे बड़े बेटे के लिए मसूर की दाल पका रहा था. पिता को ले जाए जाने पर बेटे ने पिता को पाँव से पकड़ लिया और पिता को मौत की सजा न देने का अनुरोध करने लगा, पर उसे पीट—पीट कर अलग किया गया. जब इस वाकये का पता औरंगजेब को चला तो उसने दारा शिकोह के इस बेटे को भी मौत के घाट उतरवा दिया. उसे लगने लगा था कि पिता का यह वफादार बेटा भविष्य में उसके लिए खतरा बन सकता था. दारा शिकोह के दूसरे बेटे को उसने ग्वालियर के किले में कैद कर लिया.
दारा शिकोह की तुलना एक ऐसे गुलाब से की जा सकती है, जो गुलाब की महत्ता तो रखता है पर रंग काला होने के कारण करुणा, सौंदर्य और काल के इतिहास के साथ उलझकर सदैव के लिए मुरझा गया. आज औरंगजेब के नाम से दिल्ली में सड़क है, इतिहास में उसका नाम दर्ज है, पर दारा शिकोह धर्मनिरपेक्ष हो कर भी गुमनामी के अंधेरों में खोया हुआ है.
ई. एस. डी. ओझा
दारा शिकोह: धर्म निरपेक्षता का काला गुलाब
